Tuesday, 19 October 2010
Liberty - Libertà - स्वतंत्रता
Salvador, Brazil: In seventeenth century, Zumbi dos Palmares, revolted against the slavery of Portuguese and asked for human dignity and equality for all. He was beheaded on 20 November and that day is celebrated as the day of liberty by persons of African origin.
साल्वादोर, ब्राज़ीलः सताहरवीं शताब्दी में पुर्तगाली शासकों से विद्रोह का नारा लगाने वाले और बिना भेद भाव के जीने के अधिकार की माँग करने वाले ज़ुम्बी दोस पालमारेस को मौत की सज़ा मिली. उसके शहीदी दिवस, 20 नवम्बर को अफ्रीकी मूल से आये गुलामों की स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
Salvador, Brazil: Nel diciassettisimo secolo, Zumbi dos Palmares, aveva lottato contro la schiavitù portoghese e chiesto uguaglianza e dignità per tutti. Il 20 novembre, era stato punito con la morte e quel giorno è celebrato come la giornata della libertà per le persone di origine africana.
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मानवता को पुजारी को सलाम....
ReplyDeleteशिल्प बनाना एक महान कला है. दुसरी तस्वीर में भाव देखें, एकदम जिंवत. हमारे यहाँ ज्यादातर मूर्तियाँ भावहीन और कभी कभी तो कार्टून लगती है. एक खानापूर्ति या वोटबैंक या पैसे बनाने का माध्यम होती है. मूम्बई की कुछ शिवाजी की मूर्तियाँ जरूर सुन्दर बनी है. महात्मा गाँधी की संसद में लगी प्रतिमा सही है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कलाकृति है. भारत में इस प्रकार के जीवंत sculpture बनाने की कोई ख़ास परंपरा नहीं रही.
ReplyDeleteसंजय, काजल, मेरे विचार में भारत के शिल्पकार, दुनिया के किसी देश से कम नहीं, बल्कि बढ़ कर ही हैं. पर शायद, मूर्तियाँ बनवाने वालों में ही कल्पना का अभाव है, वरना एलोरा, कोणार्क, जैसे विश्व को मोहने वाला शिल्प बनाने वाले भारत में कम नहीं हैं. अच्छे शिल्प के लिए बहुत मेहनत और पैसा चाहिये पर शायद हमारी सरकारें सस्ता काम चाहती हैं? शायद उन्हें यह भी डर हो कि सार्वजनिक स्थान से कोई मँहगी मूर्ति न चुरा ले, या उस पर कोई तोड़ फ़ोड़ कर दे! इसीलिए अक्सर घटिया किस्म के फुव्वारे और मूर्तियाँ लगवा देते हैं?
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