The market opens very early in the morning. And by the time, sun comes out, most of the business of the market is over and people start getting ready to close shops.
If you have seen the flower markets of Amsterdam or Bangkok, the words "flower market" bring out vivid and colourful images to the mind. The flower market of Mehrauli will not fit in with those images. It is on a narrow kaccha street of beaten earth, opposite the giant Mahavir statue and right next to to one of the entrances to the rose garden, with rows of wooden shacks with tin roofs. The flower sellers and the persons working there, all look poor. Among the workers, there are many children.
Perhaps, it was that contrast between the bright colours of the flowers and the dirt and squallor of the street, that left a slightly bitter taste in my heart, inspite of the wonderful smiles of the persons in front of my clicking.
दिल्ली में महरोली में होलसेल फ़ूलों की मँडी है, जहाँ अपनी दुकानों में फ़ूल बेचने वाले लोग फ़ूल खरीदने आते हैं. किसी के घर में कुछ विषेश बात हो जैसे कोई शादी या पार्टी और बहुत से फ़ूल खरीदने हों तो भी यहाँ आ कर खरीदने से अवश्य बचत होती है.
मँडी सुबह सुबह अँधेरे में खुल जाती है और जब तक सूर्य उदय हो, मँडी का काम लगभग समाप्त हो जाता है.
आप ने अगर बैंकाक या एमस्टरडेम के होलसेल फ़ूलों की मँडियाँ देखीं हों तो "फ़ूलों की मँडी" शब्द सुन कर मन में मनोरम, रँगबिरँगी छवियाँ उभरती हैं. महरोली की फ़ूल मँडी में यह बात कुछ कठिनाई से लागू होती है. विशाल महावीर मूर्ती वाले बाग के सामने, सड़क के दूसरी तरफ, गुलाब बाग के साथ, एक छोटी सी धूल भरी गली है जिसमें टिन और लकड़ी के खोके से बने हैं. फ़ूल बेचने वाले और फ़ूलों का काम करने वाले, सभी गरीब से नज़र आते हैं. काम करने वालों में बच्चों की भी कमी नहीं.
शायद उस धूल मिट्टी में फ़ैले हुए रँग बिरंगे फ़ूलों की ही वजह से ही वहाँ की गरीबी और गन्दगी मन में कुछ कड़वाहट छोड़ गयी, हालाँकि वहाँ काम कर रहे लोगों के चेहरों पर मेरे फोटो खींचते कैमरे को देख कर मुस्कानों की कमी नहीं थी.
भारत में हर शहर में ऐसी फूलों की मंडियां हैं, जहां पर बहुत से फूल चोरी के भी होते हैं।
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