Mehrauli, Delhi, India: Jamal was a poet in Mughal king Hamayun's times in sixteenth century. This mosque carries his name, because of its proximity to his beutiful tomb, decoarted with blue tiles. There is another tomb right next to that, of someone called Kamal Khan, about whom the Indian archeology department does not know.
Mehrauli, Delhi, India: Giamal era un poeta del sedicesimo secolo, ai tempi del re mughal, Hamayun. Questa moschea porta il nome del poeta, perché li vicino c'è la sua tomba, decorata con piastrelle azzure. Accanto a sua tomba, c'è un'altra tomba - quella di Kamal Khan, del quale il dipartimento di archeologia non sa niente.
Khas kar is chitra ne yaad taaja kar di un 2 mahino ki jab main mehraoli ke paas se hokar nikalta tha, aur har baar yahi sonchata raha ki jaun dkehun....
ReplyDeleteअच्छी जानकारी, अच्छा चित्र ।
ReplyDeleteपीछे की खिड़की (या रोशनदान) से जो रोशनी आ रही है उससे पूरी तस्वीर में एक 'अजब' सा अहसास पैदा हो रहा है. रोशनी के पीछे के पत्थरों का रंग हल्हा सा पड़ गया है. और ज़मीन पर जहाँ रोशनी गिर रही है वहाँ बना 'रोशनी का चकत्ता' बहुत मन भावन लग रहा है.
ReplyDeleteचंद ईंटों को हटा कर बने छोटे से एक रोशनदान से कितनी रोशनी आ रही है...अगर दीवारें ही हटा दी जायें तो जाने क्या आलम होगा रोशनी का.
सुनील जी, जहाँ तक मैंने सुना है, जमाली एक सूफ़ी दरवेश थे और यह मस्जिद 1526 के आसपास लोधी बादशाह के समयकाल में बननी आरंभ हुई थी और 1545 के आसपास हुमायुँ के शासनकाल में बनकर तैयार हुई थी। कमाली का इतिहास में कोई खास उल्लेख नहीं है लेकिन यह समझा जाता है कि कमाली जमाली के सबसे बड़े भक्त और शिष्य हो सकते हैं तभी उनको जमाली के साथ दफ़नाया गया। दिल्ली के इंडिया हैबिटॉट सेन्टर द्वारा आयोजित हिस्ट्री वॉक पर मैं यहाँ पिछले वर्ष गया था, इसके बारे में मैंने ब्लॉग पर एक पोस्ट लिखी थी और यहाँ आप उस वॉक की तस्वीरें देख सकते हैं। :)
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