Wednesday, 15 November 2006

Picture 1 - तस्वीर 1 - Foto 1

सैंडक्रीक, रुपुनूनी, गुयानाः गाँव में और कुछ न हो, पर गेमबाय जैसे वीडियोगेम पहुँच गये हैं. वापाशाना जनजाति का बालक स्वास्थ्य केंद्र में इंतज़ार का समय उसी से खेल कर बिता रहा था.

Sandcreek, Rupununi, Guyana: May be the interior villages of Guyana lack many things but even there, the video-games have arrived. A Wapashana boy waiting for his turn in the health clinic was busy playing on his game boy.

Sandcreek, Rupununi, Guyana: Magari nei villaggi indios della Guyana mancano molte cose, ma hanno i videogame. Il ragazzo della tribù di Wapashana, mentre aspettava il suo turno nel centro sanitario, giovaca con il gameboy.








इस चिट्ठे के नये रँगों का श्रेय है श्री रा. चं. मिश्रा जी को, बहुत धन्यवाद.
जैसा अनुराग और समीर जी ने सुझाव दिया, इस बार तस्वीर का कोई शीर्षक भी नहीं. आप सब का स्वागत है जो इस तस्वीर को अपना शीर्षक देना चाहें और जो मुझे सबसे पसंद आयेगा, अगली बार बताऊँगा.
अंत में संजय की टिप्पणी पर मेरी टिप्पड़ीः यह सच है कि विद्यालय की पौशाक अधिकतर विकासशील देशों में ही देखी जाती है. यह सच भी है कि यह शायद भारत में अँग्रेजी उपनिवेश के बचे खुचे चिन्हों में से एक है पर अगर इसी बहाने गरीब बच्चों को कपड़े मिल जायें या फ़िर कक्षा में पढ़ने वाले विभिन्न स्तरों से आने वाले सभी बच्चे एक से लगें, तो कुछ फायदे तो हैं इसके.

Some persons have suggested that they would like to give a title to these pictures. That will save me from trying to search for new titles all the time! Next time, I will tell you about the title that I liked most.

Alcuni hanno suggerito di non dare un titolo alle immagini, e saranno loro a suggerire il titolo. La prossima volta vi dirò il titolo che mi è piaciuto di più!

4 comments:

  1. चीनी उत्पादनो की डंपिंग के कारण विडियो गेम वहां भी पहुंच गये है जहां स्वास्थ
    और शिक्षा जैसी सुविधाओं का अभाव है।

    सदा की तरह यह चित्र भी बहुत सुंदर है। "खोखली रोशनी" शीर्षक कैसा रहेगा?

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  2. आपको और मिश्रा जी को इतनी सुंदर फोटो भेजने के लिये बहुत बधाई।

    एक अकेला मरीज़ स्वास्थ केंद्र में बैठा देख कर आश्चर्य हो रहा है।

    पीछे रखा हुआ स्ट्रेचर और गोलों से आती हुयी रोशनी बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। टूटा हुआ टाइल भी आंखें पकडता है। पर पूरे चित्र में रोशनी अपनी ओर अधिक खींचती है।

    रोशनी जो पूरी नहीं आ रही है - छन छन कर आ रही है मानो कि किस्तों में आ रही हो। एक और बात कि रौशनी बालक के पीछे से आ रही है - बालक का रुख रोशनी की तरफ़ नहीं है।

    लडके के पैर जमीन को नहीं छू रहे हैं और 'क्रास लेग्ड' बैठा है।

    "किस्तों में रोशनी"

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  3. जिस तरह से बालक डूब कर तन्मन्यता के साथ खेल रहा है, मुझे तो एक पंक्ति में सिर्फ़ यही सुझता है:

    हसरतों की दुनिया

    भले ही कुछ पल को सही,सभी दुख,दर्द और आभावों से परे एक सुखद अहसास.

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  4. समीरजी ने सही कहा, बालक को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कितनी रोशनी आ रही है कहां से आ रही है...वह तो मस्त है.

    उनके शीर्षक में सकारात्मकता अधिक है! :)

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