Afterwards, I shifted to the Indian-Western fusion dance. There were three french guys doing it, wearing tight pants and t-shirts. The stage was lit by a few lanterns and in their glow, they showed some nice acrobatics that usually started and ended in some Yoga position. The darkness added to the strangeness of their performance.
The last performance I saw was of an American girl, who taught people how to fly. It was strange since she was speaking in English and not so many Italians understand it, especially the older ones do not, but still people seemed to understand her. With cardboard wings on their shoulders, people were made to do crazy steps, all the while the teacher kept her non-stop chatter. Like, "Now we are going to try hopping and balancing our bodies on one leg. Before we can take off both the legs and actually fly, we must get used to one leg." And it made me think of Maharishi Mahesh Yogi and his claims of levitation and all those people who thought that transdental meditation wll help them levitate up in air!
Tomorrow, tuesday, there is Bharatnatyam performance in programme, so looking forward to it!
कल शाम को बाग में विभिन्न कोनों में कुछ न कुछ हो रहा था. कुछ देर तक काली धारियों वाले सफ़ेद कपड़े पहने हुए एक सड़क-नाटक को देखा. यह नाटक पर्यावरण के प्रदूषण, उपभोक्तावाद संस्कृति और युद्ध के विरुद्ध संदेश दे रहा था और हालाँकि किसी ने अमरीका का नाम नहीं लिया, पर स्पष्ट था कि नाटककार अमरीका को इन समस्याओं की जड़ मानता है.
फ़िर कुछ देर तक भारतीय और पश्चिमी नृत्य शैलियों को मिला किया जाने वाला नृत्य देखा. अँधेरे रंगमंच पर कुछ लालटेने लटका रखी थीं. उसे आधुनिक नृत्य कह सकते हैं क्योंकि उस पर तीन फ्राँसिसी युवक उछल कूद कर एक्रोबेटिक्स दिखा रहे थे, कभी रस्सी से लटकते, कभी खम्बे से कूदते, कभी एक दूसरे के कँधे पर चढ़ जाते. इस नृत्य की भारतीय प्रेरणा योगासनों से थी क्योंकि हर नृत्य मुद्रा किसी न किसी योगासन की मुद्रा से ही प्रारम्भ होती और उसी पर ही समाप्त होती.
अंत में अमरीका से आयी एक युवती ने लोगों को उड़ना सिखाना देखा. कँधे पर पँख रख कर लोगों से खूब नाच नचवाये, जिसे देख कर महेश योगी जी और उनके ट्राँसडेंटल ध्यान जिससे लोग उड़ने का सपना देखते थे याद आ गया. सोचा कि कहीं वह युवती किसी महेश योगी आश्रम से तो वह नृत्य सीख कर नहीं आयी थी ? अंत में लोग सचमुच उड़े या नहीं, यह तो नहीं देखा, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी और मुझे नींद आ रही थी.
कल मँगलवार को एक जगह भरतनाटयम का प्रोग्राम है, अब उसका इंतज़ार है.
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