A few months ago Levine has decided to do a new experiment - to live a year without buying. All the usual things that we don't actually need for our survival but we buy because of advertisements or depression or lonliness or whatever, she is going to do without. So no clothes, no music, no films, no travels, no books, no gifts. She feels that the idea of growth and economy based on consumerism is going to destroy mankind one day. Perhaps a new book will come out when she is done with this experiment.
I was thinking, what is so radical about this experiment? Our sadhus do it for their whole lives! But then thinking of the few yogis and sadhus, I had met, I thought it was not true. I thought that they were not free from desires. Perhaps this is no longer the age of Paramhans Ramkrishna? Or perhaps, I am not yet ready to meet the true yogi?
अमरीकी पत्रकार जूडिथ लेवाईन को प्रसिद्धी मिली थी उनकी पुस्तक हार्मफुल टू माइनरस् (Harmful to minors) के लिए. वह लिखती हैं अमरीकी साप्ताहिक सेवेन डेज़ (Seven Days) के लिए. पिछले वर्ष उन्होने कुछ नया करने की सोची और कहा कि मैं एक साल तक कुछ नहीं खरीदूँगी, न कपड़े, न संगीत, न कोई पुस्तक, न कोई यात्रा का टिकट, न क्रिसमस की भेंट. उनका सोचना था कि भोगकर्ता संस्कृति जिसमें विकास का अर्थ है खरीदो, और खरीदो, हमारी विचार शक्ती को बिगाड़ चुकी है. इस अनुभव पर फ़िर वह शायद एक किताब भी लिखें.
सोच रहा था कि हमारे साधू तो यह विचार सदियों से अपना रहे हैं, मोक्ष की अभिलाषा में. हालाँकि मैं बहुत से योगी/साधू आदि को नहीं जानता पर जो भी मिले, उन्हें मैंने लालच से मुक्त नहीं पाया. शायद परमहँस रामकृष्ण जैसे योगीयों का समय जा चुका है या फ़िर मुझमें ही कुछ कमी है कि सच्चे योगी को मिलने लायक नहीं हुआ हूँ ?
...या फ़िर मुझमें ही कुछ कमी है कि सच्चे योगी को मिलने लायक नहीं हुआ हूँ ?
ReplyDeleteकिसी आइने को निहारें. आप एक सच्चे योगी को निहारता हुआ पाएँगे. :)
Iam sure that the book will be worth reading.Thanks for showing us the various aspects of life.
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