The first time I had been to Ilha, the ruins were everywhere. It was strange to walk on the street and see the sea on both sides through the gaping holes in the houses. It made it somehow more tolerable for me, it seemed to me as if sea was the balm put on lacerated souls of those houses.
Today most of the ruins are gone, replaced by anonymous cement and steel blocks that are sign of economic growth and prosperity. They are worse than the cannons, they don't allow the balm of sea to pass through and heal.
इल्हा दो मोज़ाम्बीक के खँडहर देख कर गुरुदत्त की फिल्म "साहब बीबी और गुलाम" की छोटी बहू की याद आ गयी.
जहाँ आज पेड़ उग आये हैं वहाँ कभी किसी ने प्यार की बातें की होंगी, साथ हँसते बातें करते हुए बच्चे बाहर घूमने के लिए तैयार हुए होंगे, सजे धजे मेहमानों का गृहस्वामिनी ने स्वागत किया होगा, गुस्से से क्षुप्त हो कर कोई नाराज हो कर बैठा होगा, दर्द से चिल्लाया होगा कोई ...
पुराने घरों के खँडहर अगर आप को अच्छे लगते हैं तो इल्हा आप को बहुत पसंद आयेगा. २० साल तक चलने वाले गृह युद्ध ने जाने कितने लोगों को मारा, कितने घर नष्ट किये!
सुनील जी,
ReplyDeleteपहली फोटो, मे White balance गड्बडा गया है, शायद exposure अधिक हो गया..
तस्वीरें अच्छी हैं।
युद्ध सभ्यताओं को ख्ण्डहर में बदल देता हैं.
ReplyDeleteइन ख्ण्डहरों को सुन्दर कैसे कहें?
तस्वीरे अच्छी ली हैं आपने.
पंकज मास्साब को यह जगह जरूर अच्छी लगती, कैमरा ले कर चालु हो जाते.
तस्वीरें बोलती है- यह बात आपकी तस्वीरों पर एक दम लागू होती है
ReplyDeleteअच्छी तस्वीरें हैं, सुनील जी.
ReplyDeleteसमीर लाल
क्या बात है सुनील जी, खंडहर बताते हैं कि इमारतें बुलंद रहीं होंगी।
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