क्या बात है साहब! हमें इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं! दरअसल इसे ही कहते हैं आंख। ऐसे ही दुनिया-समाज को देखते रहिए, धरती का मर्म समझ में आ जाएगा। आपकी आज्ञा होगी, तो कभी इस तस्वीर का इस्तेमाल अपने ब्लॉग पर करूंगा। उल्लेख सहित।
सही शीर्षक "प्रतिक्षा" तस्वीर देख कर लगता है, वहाँ हवा में प्रदुषण कम है, या ताजी-ताजी बारिश हुई है. कठरी लेकर यात्रा अब भी होती है? सड़क पर बोझा उतार जलपान में मग्न यात्री.
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क्या बात है साहब! हमें इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं! दरअसल इसे ही कहते हैं आंख। ऐसे ही दुनिया-समाज को देखते रहिए, धरती का मर्म समझ में आ जाएगा। आपकी आज्ञा होगी, तो कभी इस तस्वीर का इस्तेमाल अपने ब्लॉग पर करूंगा। उल्लेख सहित।
ReplyDeleteसही शीर्षक "प्रतिक्षा"
ReplyDeleteतस्वीर देख कर लगता है, वहाँ हवा में प्रदुषण कम है, या ताजी-ताजी बारिश हुई है.
कठरी लेकर यात्रा अब भी होती है? सड़क पर बोझा उतार जलपान में मग्न यात्री.
नजर बिछी है ले अभिलाषा, सूनी निर्जन पड़ी राह पर
ReplyDeleteकोई आ सिन्दूर भरेगा, आशा की कुंआरी मांगों में