Saturday, 13 October 2012

Soldiers - Soldati - सिपाही

II world war memorial, Arsiero (VI), Italy - S. Deepak, 2012
II world war memorial, Arsiero (VI), Italy - S. Deepak, 2012
II world war memorial, Arsiero (VI), Italy - S. Deepak, 2012

Arsiero, Italy: Reading the names of the guys who had died in the war, never fails to move me. Here in north of Italy, each small or big town and village has its memorial with the list of local guys who had died in the war. In the last two world wars, these mountains were the sites of deadly fightings.

अरसिएरो, इटलीः युद्ध में शहीद होने वाले सिपाहियों के नाम पढ़ूँ तो मन भर आता है. यहाँ उत्तरी इटली में एल्पस के पहाड़ों के हर छोटे बड़े शहर और गाँव में शहीद स्मारक बने हैं जिन पर मरने वाले स्थानीय युवकों की लिस्ट लगी होती है. पिछले दोनो विश्व युद्धों में इन पहाड़ों पर घमासान लड़ाई हुई थी.

Arsiero, Italia: Leggere i nomi delle persone cadute in guerra mi commuove ogni volta. Qui nel nord d'Italia, ogni città e villaggio, grande o piccolo, ha la sua memoriale con la lista dei ragazzi locali caduti durante la guerra. In entrambe le guerre mondiali, queste montagne hanno visto tremende battaglie.

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4 comments:

  1. युद्ध के खिलाफ गुस्सा नहीं आता, इन्हें देख कर ?

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    1. अफलू जी, मरने वालों के नाम देख कर, उनकी उम्र देख कर और उनके परिवार का सोच कर दुख होता है. कई बार बूढ़ों को वहाँ फ़ूल चढ़ाते देखा है, कि इनमें मेरा भाई, मेरे पिता भी हैं.

      पर साथ ही, युद्ध की क्या कीमत चुकानी पड़ती है, यह स्मारक इसके जीवन्त उदाहरण हैं. शायद इसीलिए इन पहाड़ों में रहने वाले लोगों के मन में युद्ध के विरुद्ध गहरी भावनाएँ बनी हैं, चाहे ईराक युद्ध हो या लिबिया पर हमला, यहाँ हमेशा युद्ध के विरुद्ध प्रदर्शन होते हैं.

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  2. कम से कम ये कृतघ्न तो नहीं हैं, हमारी तरह.

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    1. बचपन से ही हमें देशभक्ति के गुण सिखाये जाते हैं, सिपाही बनना पौरुष की निशानी बन जाता है, और अठारह बीस वर्ष के नवयुवक उसी ज्वार में आ कर चल पड़ते हैं शहीद होने. साल और दशक बीत जायें तो हम अपने आप से पूछ सकते हैं कि क्या उपयोगिता थी उस युद्ध की, किसने जीता और क्या पाया उस युद्ध से. उन शहीदों के परिवारों का क्या मिला?

      पर अगर सोचूँ कि तिब्बत पर कैसे चीन ने अधिकार कर लिया या कारगिल में कैसे पाकिस्तानी सैना आ गयी तो यह भी लगता है कि क्या शाँती का सोच कर ही शाँती मिल जाती है? जब दूसरी ओर शाँती की सोच न हो तो शाँती का क्या रास्ता है?

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