tag:blogger.com,1999:blog-3518592736648994499.post4231890945521054533..comments2024-03-03T14:28:44.862+05:30Comments on Chayachitrakar - छायाचित्रकार: Tired - थकान - StanchiSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3518592736648994499.post-8424037039201367072006-10-03T21:25:00.000+05:302006-10-03T21:25:00.000+05:30Really a great photographs, and equally meaningful...Really a great photographs, and equally meaningful comment.<br>Congrats!डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवालhttp://www.blogger.com/profile/03131655217832564596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3518592736648994499.post-62336814373678570582006-10-01T22:04:00.000+05:302006-10-01T22:04:00.000+05:30संजय, मुझे भी "तस्वीर अच्छी है" पढ़ कर उत...संजय, मुझे भी "तस्वीर अच्छी है" पढ़ कर उतना अच्छा नहीं लगता जितना यह टिप्पणी पढ़ कर लगा. कबूतर की एक ही टाँग दिख रही है, यह मुझे नहीं दिखा था, पर कबूतर को तस्वीर में लेना अवश्य अपनी मर्जी से किया था, क्योकि मुझे बेजान तस्वीरें जिसमें कोई जीव या मानस न हो, मुझे कम जचतीं हैं.Sunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3518592736648994499.post-53212858372410775652006-10-01T14:52:00.000+05:302006-10-01T14:52:00.000+05:30आपकी फोटोग्राफी और संजय जी की नज़र की बारीकी तारीफ...आपकी फोटोग्राफी और संजय जी की नज़र की बारीकी तारीफ के काबिल है।ratnahttp://soniratna.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3518592736648994499.post-72236941458604988932006-10-01T13:26:00.000+05:302006-10-01T13:26:00.000+05:30अनूठा चित्र ।मूर्तियाँ कह रही हैं--अगर हम थक गए तो...अनूठा चित्र ।<br><br>मूर्तियाँ कह रही हैं--<br><br>अगर हम थक गए तो उस रचनाकार का क्या होगा<br>जिसने अथक परिश्रम करके हमें बनाया है,इस आस<br> में कि हम कभी थकें नहीं. हम इंसान नहीं हैं जो<br> अपने सृजनकार तथा अपनों के साथ ही गद्दारी करें।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3518592736648994499.post-85194564472173595572006-10-01T11:40:00.000+05:302006-10-01T11:40:00.000+05:30पहले तो तस्वीर आपने अच्छी ली हैं, यह रूटीन टिप्पणी...पहले तो तस्वीर आपने अच्छी ली हैं, यह रूटीन टिप्पणी होती जा रही हैं अतः कुछ और भी जोड़ देता हूँ, इसे छिद्रांवेष्ण भी कह सकते हैं.<br>सुन्दर प्रतिमाओं का बुरा हाल देख कर लगता हैं सभी जगह एक ही कहानी हैं.<br>बेचारा कबुतर भी एक टाँग पर खड़ा हो कर प्रतिमाओं की नकल करता प्रतित हो रहा हैं. <br>बुरा न माने अगर भुल से भी कबुतर फ्रेम में आया हैं तो भी वह तस्वीर को जिवंत ही बना रहा हैं.संजय बेंगाणीhttp://www.tarakash.com/joglikhinoreply@blogger.com